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रविवार, 31 दिसंबर 2017

अलविदा 2017. तुमसे कोई शिकायत नहीं



डायरी के कई पेज कोरे रह गए। कभी ऐसा होता नहीं था। जब लिखने के धंधे में नहीं था तो रोज़ लिखता था, जब से लिखना धंधा बना अपना लिखा हुआ कुछ भी पढ़ने का मन नहीं करता। ऐसा लगता है कि लिखना छूट गया है। अख़बार, पत्रिका सब से कनेक्शन कट गया है। पढ़ने से भी, छापने से भी। जब लिखने के पैसे नहीं मिलते थे तब सार्थक लिखता था। अब मामला थोड़ा अजीब है। कोशिश रहेगी पहले की तरह लिखना शुरू हो जाये। अब ब्लॉग ख़ाली नहीं रहेगा।
कमाने के चक्कर में जो गंवाया है उसकी वापसी हो जाये।
मिलते हैं........कुछ अच्छा लेकर।

2017.......ज़िंदाबाद।।

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (03-01-2018) को "2017. तुमसे कोई शिकायत नहीं" (चर्चा अंक-2837)

    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    नववर्ष 2018 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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