पेज

रविवार, 23 जुलाई 2017

इश्क़ का कॉन्ट्रैक्ट करोगे?

सुनो!

कहो!

प्यार हुआ है कभी तुम्हें?

हां! कई बार।

और जिनसे तुमने प्यार किया, क्या उन्हें भी तुमसे प्यार था?

प्यार वन साइडेड कब होता है यार? इश्क़ सौदेबाज़ी है। गाना नहीं सुनती?

सुनती हूं पर इतना सोच नहीं पाती।

वैसे मुझसे ये सब क्यों मुझसे पूछ रही हो?

इश्क़ हो गया है तुमसे। लव कॉन्ट्रैक्ट साइन करोगे?

इश्क़ का कॉन्ट्रैक्ट साइन करूं? तुम्हें पता है इसके  लिए म्युचुअल कंसेट का होना ज़रूरी है?

हां! इतना कानून मैंने भी पढ़ा है। कन्सिडरेशन का होना भी ज़रूरी है। प्रपोज़ल मैं दे ही रही हूं।

तुम एग्रीमेंट के लिए हां कर दो।



तुम्हें पता है मेरा पूरा खानदान वकील है?

तो?

सब लोग मिलकर तुम्हारा-मेरा कॉन्ट्रैक्ट, वॅाइड करा देंगे।

अडल्ट हो?

डाउट है यार।

कागज़ में में तो कब के पार कर चुके यार। मैंने तुम्हारा कॅालेज कार्ड देखा है। कोर्ट में दिखा देना।

यार!  तुम्हें नहीं पता। मेरे पापा को नहीं जानती तुम।  बर्थडे सर्टिफ़िकेट चेंज करा देंगे।

कोर्ट में तुम बता देना कि सब झूठ है। मेडिकल टेस्ट के लिए अप्लाई कर देना।

मैं कुछ नहीं बोल पाऊंगा। एप्लीकेशन भी नहीं लिख सकता।

क्यों?

पापा कहते हैं सारी ज़मीन-जायदाद ले लो। वहीं घर बनवा लो। मुझे अपना चेहरा कभी मत दिखाना।

इससे डर जाते हो? मां-बाप अपने बच्चों को कभी नहीं छोड़ सकते। मान जाएंगे एक न एक दिन।

यही तो बात है। उस एक दिन को भी बर्दाश्त करना मेरे लिए बहुत मुश्किल है।

प्यार के लिए लोग कुछ भी कर जाते हैं। तुम इतना नहीं कर सकते?

प्यार! मगर किससे?

मुझसे! कह दो नहीं करते प्यार?

हां! नहीं करता। डर और प्यार कभी साथ-साथ नहीं रहते। मुझे डर लगता है। मेरे हिस्से की बगावत हो चुकी है। मुझसे नहीं होगा।
उनकी पल भर की उदासी हमें और तुम्हें ख़ुश नहीं  रहने देगी।
कई बार ख़ुद की ख़्वाहिशें क़ुर्बान करनी पड़ती हैं।
कुछ एहसास बस दिल में दफ़्न हो जाते हैं। उन्हें जाहिर करने की हिम्मत भी नहीं होती।
मेरा क्या है मुझे प्यार कभी नहीं होगा। हुआ भी नहीं। तुम्हें मुझसे कोई बहुत अच्छा मिल जाएगा। मैं अच्छा नहीं हूं।

हां! मुझे भी लग रहा है। तुम पछताओगे। तुम्हें पता नहीं! मैं वक़्त के साथ और ख़ूबसूरत हो जाऊंगी। मुझे पढ़ने, सुनने वाले तुमसे ज़्यादा होंगे। मैं जहां जाऊंगी वहां लोग मुझे घेर लेंगे। ऑटोग्राफ़ के लिए भीड़ लग जाएगी।
एक वक़्त बाद मेरे बस फ़ैन होंगे जिनमें तुम भी शामिल रहोगे।
मेरी एक झलक के लिए तरसते रह जाओगे।

अरे वाह यार! ऐसे मत कहो, मुझे प्यार हो जाएगा।
 वैसे मेरा इरादा चांदनी चौक पर गोलगप्पे की दुकान खोलने का है। दस रुपए में चार, दही मार के।पर तुम्हारे लिए सब कुछ फ़्री रहेगा।
हां! तुम्हें लाइन में भी नहीं लगना पड़ेगा। तुम्हें तो मैं  प्रोटोकॉल तोड़ कर ख़ुद गोलगप्पे खिलाऊंगा। अपने हाथों से।

भक्क! बात मत करो तुम मुझसे।

जैसी तुम्हारी इच्छा। नहीं करूंगा।

हे!

बोलो यार! मुझे फ़ोन पर बात करना बहुत ख़राब लगता है।

मैं ही कौन सी मरी जा रही हूं।

तुम हर बार मरने की बात क्यों करने लगती हो?

डरो मत! न तुम सूरज पंचोली हो न मैं जिया खान।
मेरे पास कई सारे ऑफ़र हैं। तुमसे बेहतर हज़ार मिलेंगे।

सुनाती क्यों हो जाओ।

जा रही हूं। मुझसे मिलने की कभी कोशिश मत करना।

जब कभी नहीं किया तो अब क्यों करूंगा।
सो जाओ। मुझे भी नींद आ रही है।

तुम्हारे सपनों में आ गई तो?

मैं सपने नहीं देखता। कभी सपना ही नहीं आता।

मेरा केस अलग है। मैं कभी भी, कहीं भी आ सकती हूं। इसके लिए तुम मुझ पर ट्रेसपास का केस भी नहीं कर सकते।

चाहूं तो भी नहीं कर सकता। मैं एक डुप्लीकेट पत्रकार हूं। वकालत शुरू करने से पहले मैंने तलाक ले लिया इस धंधे से। ख़ुद के लिए वकील नहीं ढूंढ सकता। मेरा वक़्त बिक चुका है।

तुम्हारा तो पूरा खानदान वकील है। करा दो केस।

क्या यार! ज्यूरिस्डिक्शन नहीं पढ़ा है क्या?

पढ़ा है लेकिन लॅा तुमने किया है मैंने नहीं। मेरा कानून से रिश्ता बड़ा उलटा है। जैसे तुमने नौ महीने में पांच साल की मेहनत को क़ुर्बान किया है वैसे ही मैंने पत्रकारिता को श्रद्धांजलि दी है चार महीने कानून पढ़ कर।
अब अगर में तुमसे नोम चोमस्की का अधिगम सिद्धांत पूछ लूं तो तुम क्या बताओगे?

देखो! नौ महीने में मैंने भाषा से इतर कुछ जाना नहीं है। अभी अपने फ़ेवरेट सर का लेक्चर याद करके सुना दूंगा।

नहीं! नहीं! मैं फ़ोन रखती हूं। वैसे भी हिंदी से मेरा कुछ ख़ास रिश्ता नहीं है। मैं लैंग्वेज पढ़ती हूं भाषा नहीं।

ओके! बाय।

बाय!

सुनो!

अब क्या है?

गोलगप्पे खिलाओगे?

हां! पहले तुम सेलिब्रिटी तो बन जाओ।

कुछ दिन दिन इंतज़ार करो। बन जाऊंगी। एक बात बताओ! तुम सच में गोलगप्पे की दुकान खोलोगे?

जिस हिसाब से मैं फ़ूड रेसिपी लिख रहा हूं क्या पता मूड बदल जाए।

ठीक है। मुझे न मैनेजर रख लेना। तुम्हारे पैसों का हिसाब-किताब रखूंगी।

रहने दो। सैंडो बंडी में पांच जेब लगवाऊंगा।  सारा पैसा एडजस्ट हो जाएगा। तुम परेशान मत हो।
तुम सेलिब्रिटी बनो।

धत्त! हमें नहीं बनना सेलिब्रिटी। हम ख़ुश हैं ऐसे ही।

ठीक है। काटो फ़ोन। मुझे भी ख़ुश होने दो। सुबह मुझे कुछ काम है। जल्दी उठना है।

ओके! भाड़ में जाओ। अब कभी नहीं बात नहीं करूंगी।

ठीक है। मैं गोलगप्पे की दुकान अगले महीने खोल लूंगा।

सुनो!

अब क्या है?

मुझसे दोस्ती करोगे?

नहीं! दुश्मनी का कोई स्कोप है?

भक्क! कभी सीधे क्यों नहीं कुछ बोलते?

क्योंकि चांद का मुंह टेढ़ा है।

मतलब?

कुछ नहीं।

यार! भ्रम क्यों फैलाते हो?

क्योंकि मैं पत्रकार हूं। आजकल हम भ्रम ही फैला रहे हैं। प्राइम टाइम वाले भाई साहब को नहीं देखती?

कई सारे हैं नाम बताओ?

सब! वे सारे तुम्हारे 'वाग्दत्ता' भसुर हैं।

मतलब

भ्रम!

तुम्हें पता है तुम ख़ुद 'भ्रम' हो गए हो।

मुझे पता है। इसी भ्रम से मुझे सच्चा वाला प्यार हो गया है।

इसमें ऐसा क्या है?

है कुछ ख़ास।

क्या? ज़रा मुझे भी पता चले।

भ्रम सत्यम् जगत मिथ्या।

भक्क!

दार्शनिक बनने का इरादा है?

नहीं, गोलगप्पे बेचने का।

( इस पटकथा के सभी पात्र काल्पनिक हैं। किसी भी व्यक्ति, विषय या संस्था से इसका कोई संबंध नहीं है। यदि किसी भी घटना से इसका संबंध पाया जाता है तो उसे महज़ एक संयोग कहा जाएगा।)

- अभिषेक शुक्ल।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें