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शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

विदाई वाला दिन...भीगी पलकों वाली कुछ तस्वीरें

शुक्ला महासभा की अध्यक्षा सुरभि के साथ मैं और राघवेन्द्र 


राघवेन्द्र..महाकवि हैं हमारे संस्थान के 

पावन, राष्ट्रवादी पत्रकार हैं 

गीतकार अनुराग अनुभव, अभिषेक बोले तो मैं, राघवेन्द्र, कम्युनिस्ट पत्रकार समर और शताक्षी 

राघवेन्द्र, विवेक और मैं 

मेधाविनी के साथ 

                                                ओमेन्द्र,गौरव,नीलेश,मेधा राघव और मैं


पार्थ ही इसमें नया चेहरा है 

ऐसे सीन होते रहते हैं 

फजील, सुल्तान,तस्लीम,हुमा, शताक्षी, राघव और विवेक 

ऐसे पोज़ कौन मरता है भाई 

आखिरी क्लास 

आसमानी वाले शर्ट में है विवेक...बिहार से निकलने वाला हर बड़ा नाम इसके गाँव या पड़ोस वाला ही हो जाता है..सबसे कनेक्शन जोड़ने वाला विवेक बिहारी एकता और जातिवाद का तगड़ा समर्थक है.
मेरा पहले ही दिन दोस्त बन गया था । इतना अच्छा वक्ता है कि किसी की भी दोस्ती हो जाए। पहले दिन ही उसने कश्मीर समस्या की बात उठाई। शशांक भी साथ में बैठा था। विवेक ने कहा कि कश्मीर को मुक्त कर देना चाहिए। मैंने कहा कि वस्तु है क्या कश्मीर जो किसी को दान में दे दिया जाए।बहस हुई फिर कुछ देर बाद पता चला भाई तगड़ा डिप्लोमेट है। वामपंथी समझ कर मुझसे बात कर रहा था। दांव उलटा पड़ गया था...

वैसे इस फोटो में हैं अक्षय,आर्य भारत,निखिल,अरुण,अभिनव,शशांक और खुर्शीद

ये नौटंकी था खाली..इस फोटो में शशांक जैसा लग रहा है वैसा बिलकुल नहीं है

ये नौटंकी था खाली..इस फोटो में शशांक जैसा लग रहा है वैसा बिलकुल नहीं है





मेरे बगल में बैठा है नितीश. बचपन से ही BBC हिंदी में काम करना चाहता है..जनसत्ता में प्लेसमेंट हो गया है भाई का.
वैसे भाई का जलवा कश्मीर से कन्याकुमारी तक चलता है...कोई काम हो बताइयेगा

हमारी पूरी क्लास, हिंदी और उर्दू पत्रकारिता बैच 2016-17 की आखिरी तस्वीर..विदाई के वक़्त की.


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