पेज

रविवार, 22 जनवरी 2017

शब्द कम पड़ रहे



शब्द कम पड़ रहे मैं सृजन क्या करुं
कोई समिधा नहीं फिर यजन क्या करुं,
ईश रूठा है मुझसे बिना बात ही
मैं भी रोते नयन से भजन क्या करूं?

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-01-2017) को "होने लगे बबाल" (चर्चा अंक-2584) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ख़ूब ... ऐसे में कुछ भी होना सच में मुश्किल है ...

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही अच्छा article है। .... Thanks for sharing this!! :)

    जवाब देंहटाएं