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शनिवार, 24 दिसंबर 2016

हर हर महादेव

दिसम्बर के महीनें में जब, सुबह-सुबह रजाई स्वर्ग का सुख देती हो ऐसे में गंगा स्नान के लिए घने कुहरे की परवाह किए बिना १३४ किलोमीटर बाइक से हरिद्वार के लिए निकलना किसी एडवेंचर ट्रिप से कम न था। दस कदम दूर कुछ नहीं दिखाई पड़ता था। रास्ता सूंघ कर आगे बढ़ना पड़ रहा था।


बाइक चला रहे थे वीरु भइया, बीच में बैठा था अंकित और सबसे पीछे मैं। ट्रिपलिंग सवारी करना गैर कानूनी है लेकिन जब ड्राइवर, वकील हो तो उसके लिए ये सोचने का विषय नहीं होता। कोई न कोई प्रावधान पुलिस को समझा कर बचा जा सकता है।
ख़ैर हम सब कभी हिमालय नहीं गए हैं लेकिन आज बाइक पर साइबेरिया वाली फ़ीलिंग आ रही थी।
रास्ते भर कांपते रहे, एक जगह रुक कर हाथ की भी सिंकाई हुई।
सूरज भगवान समय से निकले। तब लगा कि शायद हमारी भक्ति देखकर भावुक हो गए हैं भगवान।

करीब ९ बजे तक गंगा मां में हम सब डुबकी मार चुके थे। रास्ते की सारी थकान रफूचक्कर। गंगा मां की धवलता और चंचलता यहीं देखने को मिलती है।
नहाने के बाद शांति कुंज , हरिद्वार में गायत्री मां के दर्शन और फिर भंडारे में भरपेट स्वादिष्ट भोजन 😋
फिर क्या भजन-भोजन के बाद मौसी के पास आ गए। अंकित अपने रूम पर, भइया गाज़ियाबाद, और मैं ट्रेन 🚄 के जनरल डिब्बे में।

घर 🏠 जा रहा हूँ। IIMC में पढ़ाई का पहला सत्र समाप्त। १०दिन की छुट्टी मिली है। पहले मैं घर नहीं जाने वाला था लेकिन
अम्मा(दादी) का भावुक फ़ोन आया दो दिन पहले। ख़ुद को रोक नहीं पाया। मामा से बिना पूछे निकल आया एक्साइटमेंट में।
२ जनवरी से नया सत्र शुरू होगा। १ तक दिल्ली वापस आना है ।

अभी ट्रेन धीरे-धीरे रेंग रही है, दुआ कीजिए टाइम से लखनऊ पहुंच जाए।

मंगलवार, 13 दिसंबर 2016

मन बावला है



मन बावला है, मन बावला है
अनचाही सी डगर क्यों चला है ?
मुझको ख़बर है कि
ख़्वाहिश हुई है
कुछ तो मोहब्बत सी
साज़िश हुई है
कोई है गुम-सुम
ख़्यालों मे ख़ुद के
लगता है चाहत की
बारिश हुई है...
मन बावला है,मन बावला है
अनचाही सी डगर क्यों चला है ?
उसने कहा कुछ
मैंने सुना कुछ
सपने मे उसने
शायद बुना कुछ
फिर भी है गुम-सुम
ख़ुद में ही खोई
मिल के भी मुझसे
क्यों न कहा कुछ??
मन बावला है,मन बावला है
अनचाही सी डगर क्यों चला है ?
अब तो मोहब्बत का
इज़हार कर दो
हो न मोहब्बत तो
इंकार कर दो
सब कुछ पता है
मासूम दिल को
ख़ुद को भी चाहत की
कुछ तो ख़बर दो।।
मन बावला है,मन बावला है
अनचाही सी डगर क्यों चला है ?
-अभिषेक शुक्ल

रविवार, 11 दिसंबर 2016

आभासी दुनिया के लड़ाके

भक्त भक्षकों और भक्त रक्षकों ने फेसबुक को नरक बना दिया है।दोनों ख़ुद को यमराज समझने लगे हैं।मौका मिलते ही दोनों एक-दूसरे पर ऐसे टूटते हैं कि जैसे बिना विरोधी मारे मोक्ष नहीं मिलेगा।
जो भक्षकों की विचारधारा का खंडन करे, उनसे असहमति जताए वो भक्त, संघी और अराजक है।
यही हाल रक्षकों का है। उनके नज़र में सरकार की आलोचना करना देशद्रोह है। आलोचक और आतंकवादी होना एक ही बात है।
दोनों प्रकार के लोग अपनी राहों से भटके हुए हैं।
उदारवादी लोग भी उतने ही अराजक और असभ्य हैं जितने कि इनके विरोधी रूढ़िवादी लोग।
वास्तव में दोनों विचारधाराओं के लोग अतिवादिता के मारे हुए लोग हैं।
इन दिनों स्वतंत्र चिंतन, विचार हीनता के धुंध में ओझल है। किसी को कहीं दिख जाए तो उसे ठीक पते पर पार्सल करना न भूलें। देश आपका आभारी रहेगा।