पेज

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

भरत ने कही ह्रदय की बात




भरत ने कही ह्रदय की बात
चलो तुम आज अयोध्या तात,
अभी तो तनिक शेष है रात
तात! तुम स्वयं नवल प्रभात।।
नहीं कुछ कैकयी का दोष
कहाँ नारी को इतना होश
सकुचित हुआ ह्रदय का कोष
परमति प्रकट हुआ था रोष।।
मन्थरा का था मलिन प्रभाव
दे दिया अविनाशी सा घाव
न जाने कैसा था वह ताव
किया जो अधम दिशा को पांव।।


प्रसंग बताइये?
😊😊😊😊😊😊
(पूरा कुछ दिन बाद लिखूंगा)
-अभिषेक

बुधवार, 3 फ़रवरी 2016

कागज़


किताबों के दफ़्तर में रंगीन कागज़
रौशन है दुनिया जहाँ इनकी आमद,
सीखते ये दुनिया को सारे नज़ाकत
इन कागजों में गज़ब है हिमाकत।
इन्हीं काग़ज़ों से है रंगीन दुनिया
ये न हों तो लगती है संगीन दुनिया ,
ये हों तो मीठी है नमकीन दुनिया
ये न हों तो लगती है ग़मगीन दुनिया।
कहीं काग़ज़ों से है बिगड़ी तबियत
कहीं काग़ज़ों से हुई फिर फ़ज़ीहत,
कहीं काग़ज़ों से है गुमसुम अक़ीदत
कहीं काग़ज़ों से मिली फिर नसीहत।
कहीं काग़ज़ों में बनी है कहानी
कहीं कागजों की सुनी है जुबानी,
कहीं काग़ज़ों में हैं रस्में निभानी
कहीं काग़ज़ों में है उलझी जवानी।
-अभिषेक शुक्ल
(एक छोटी सी कोशिश कागज़ पर )

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

मेरी आँखों में उतरी 😊😊



मेरी आँखों में उतरी इश्क़ की ऐसी
वीरानी है
कि जैसे तुमको पाने की मेरी चाहत
पुरानी है !!
सुचिता के तूलिका से....