वंदे मातरम्
जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा.
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Abhishek Shukla
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सोमवार, 15 दिसंबर 2014
उम्मीद
अब उम्मीद नहीं कर पता मैं
कुछ पाने की
जहाँ से
क्योंकि
कुछ पाने की उधेड़बुन में
मैं
बहुत कुछ खोता हूँ।
1 टिप्पणी:
दिगम्बर नासवा
15 दिसंबर 2014 को 10:49 pm बजे
जो है उसे ही बचा के रख सकें तो बहुत है ...
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जो है उसे ही बचा के रख सकें तो बहुत है ...
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