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बुधवार, 5 सितंबर 2012

संताप

कुछ कहने से डर लगता है
 जाने क्या होगा अंजाम मेरा,
मेरी रूह कांपती है अक्सर
 कैसे होगा सब काम मेरा ,
 मेरी राहें सब से जुदा हैं क्यों?
 कुछ करता हूँ कुछ हो जाता है,
जिन राहों से गुजरता हूँ मैं.
  कुछ न कुछ खो जाता है ;
भूली बिसरी रातों ने
 कुछ ऐसे दर्द दिए हैं मुझे ,
मैं भूलूं तो याद आती हैं ,
मैं अब तक भूल सका न जिन्हें ,
 शायद वो पहली गलती थी ;
जब जज्बातों ने दम तोडा था
 मैं सीधा सदा बच्चा था,
मेरी राहों में सौ रोड़ा था ,
 हर बाधा मैंने पार किया
 गिर गिर कर उठाना सीखा ;
सब कुछ अपना मैं वार दिया
, मेरे वार पे जो प्रहार हुआ
 उसका कटु अनुभव अब तक है
' जो भौतिकता ने छीना था;
 वह अदभुत कलरव अब तक है
 जब शून्य हो गयी थी स्मृतियाँ ,
 भव शून्य हो गया था जीवन ,
 बस अधरों में मैं विस्मृत था
 न जड़ ही रहा न रहा चितवन .
 संकल्पों का संधान किया 
मैंने पहला विषपान किया ;
 धर्म- कर्म था था भूल चूका ,
 विधि में मैंने व्यवधान किया .
 अब भूल रहा शैनः शैनः ,
 अपने अर्जित उन पापों को ;
 जब मृत्यु मेरी आ जाएगी
 तब भूलूंगा संतापों को ..............................

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