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बुधवार, 29 अगस्त 2012

.............तलाश ...........

इन हवाओं में नमी है शायद ये भी साथ हैं मेरे ; कहना चाहते हैं कुछ पर लफ्ज़ नहीं मिले ; दर लगता है कहीं ये नमी समंदर न बन जाए ; और साहिल पर रेत के अलावा कुछ न मिले इन आँखों का क्या है? बहती रहती हैं , कुछ जाने bina , किसी की तलाश में , किस्मत ही कुछ ऐसी है कि ; तलाश कभी ख़त्म ही नहीं होती.......... रेत के महल बनाकर गलती कर बैठा जानते हुए भी कि; एक झोका ही काफी है, बर्बाद करने के लिए ; अब तो आदत में , शामिल है जुड़ना , टूटना , और , फिर चलते रहना......................

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