पेज
▼
बुधवार, 29 अगस्त 2012
.............तलाश ...........
इन हवाओं में नमी है
शायद ये भी
साथ हैं मेरे ;
कहना चाहते हैं कुछ
पर
लफ्ज़ नहीं मिले ;
दर लगता है कहीं
ये नमी समंदर न बन जाए ;
और
साहिल पर
रेत के अलावा कुछ न मिले
इन आँखों का क्या है?
बहती रहती हैं ,
कुछ जाने bina ,
किसी की तलाश में ,
किस्मत ही कुछ ऐसी है कि ;
तलाश कभी
ख़त्म ही
नहीं होती..........
रेत के महल बनाकर
गलती कर बैठा
जानते हुए भी
कि;
एक झोका ही काफी है,
बर्बाद करने के लिए ;
अब तो आदत में ,
शामिल है
जुड़ना ,
टूटना ,
और ,
फिर चलते रहना......................
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें