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गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

जो लौट गये....क्या आयेंगे?

  जो लौट गए क्या आयेंगे?

थी राह अपरिचित कूच किये

किस हेतु चले कुछ ज्ञान नहीं, 

रुक सकते थे पर नहीं रुके

अनहोनी का भी भान नहीं,

थोड़े रूठे, फिर रूठ गये

हम उन्हें मना क्या पायेंगे?

जो लौट गये...क्या आयेंगे?


दोनों बुआ के साथ शायद आखिरी तस्वीर यही है.



राहें तय थीं, तिथियां तय थीं

हम विधिना से अनजान रहे

वे हुए मौन, फिर कहे कौन

किससे, किसकी पहचान रहे?


जो गया उसे लौटाने का

कहीं युक्ति जुगत ले जायेंगे?

जो लौट गये...क्या आयेंगे?


जो सृजक वही संहारक क्यों?

जो सुख दे, दुख का कारक क्यों?

वैतरणी की नौका धोखिल

फिर वह प्राणों की तारक क्यों?


गति जीवन की सुलझाएंगे

डूबे तो क्या पछतायेंगे?

जो लौट गये, क्या आयेंगे?


नियती सबकी हन्ता है क्या

जो लोग गये, किस ठौर गये?

किसने सांसों को गिन डाला

किसको लेकर किस ओर गये?


विधि ही कर्ता विधि ही दोषी

विधि को क्या समझाएंगे?

जो लौट गये, क्या आयेंगे?


जो छीना क्या वो तेरा था

उस पर क्या कम हक़ मेरा था,

यम ने कैसे दस्तक दे दी

घर मेरा रैन बसेरा था?


हम तेरा क्या कर पायेंगे

क्या बिन उसके रह पायेंगे

जो लौट गये, क्या आयेंगे...?


किसने जीवन की इति मापी

किसने जीवों में प्राण भरा,

किसकी सुधि में लेखा-जोखा

किसकी बुधि में निर्माण भरा? 


क्यों लगता है ऐसा जग को

कुछ प्रश्न सुलझ ना पायेंगे, 

जो लौट गये, क्या आयेंगे........?

मेरी बुआ.....ऐसे गई कि फिर आई ही नहीं.......!!!
13 मार्च 2021. बहुत मनहूस दिन था.