पेज

शनिवार, 13 जनवरी 2018

गली के कुत्ते, गली के अंदर, बहुत ही तन कर, खड़े हुए हैं



गली के कुत्ते, गली के अंदर, बहुत ही तन कर, खड़े हुए हैं 
मैं आना चाहूं, गली के अंदर, पड़ी हैं पीछे, हज़ारों कुतियां 
ये भौंकती हैं, वे भौंकते हैं, ये भौंकते हैं, वे भौंकती हैं 
मैं भगना चाहूं, जिगर लगा कर, वे काट खाएं कि जैसे हडियां। 

संभल के चलना, रही है फ़ितरत, मगर लगे हैं, कई सौ टांके 
कई गली में में, मैं गिर के संभला, कई गली में, चुभी थी कटियां 
सिहर ही जाता, मैं याद करके, वो दस बजे का, अजब सा मंज़र 
वो लंबी जीभें, वो दांत तीखे, वो ख़ौफ़ आलम, सियाह रतियां।। 

(आज कुत्ता संघ के द्वारा दौड़ाए जाने के बाद, दिल से यही निकला...क्षमा सहित....आमिर ख़ुसरो…..आलोक श्रीवास्तव.....मेरे साथ वाले लड़के की मरम्मत संघ ने कर दी है, पांच इंजेक्शन उसे लग के रहेगा...मैं सुरक्षित हूं. ये वाला कुत्ता नहीं था...ये अच्छा वाला है...बेरसराय रहता है....IIMC में इसका आना-जाना है)

बुधवार, 10 जनवरी 2018

आंख खुली चौराहे पाए

एक पांव राहों में धरता
सौ-सौ राहें ख़ुद ही फूटें,
अनुभव वाला मांझा लेकर
मेरी रोज़ पतंगे लूटें।

मुझको जाने क्यों भ्रम होता
छाती में आत्म अधीरा है,
जो ओझल जग रही सदा
वह रोती-गाती मीरा है।

मन के भ्रम को कमतर आंके
थोड़ा सा भीतर भी झांके
भय, विस्मय, निर्वेद, ग्लानि की
चादर कोई नियमित टांके।

चीखें सुन सब चुप हो जाते
कहीं दिखाने को रो जाते
जैसे-तैसे सिसक-सिसक कर
चिर निद्रा में ही सो जाते।

इतना मौन घोंटने पर भी
आहें नहीं मिला करती हैं,
आंख खुली चौराहे पाए
हम भी थोड़े से घबराए
लेकिन घबराने से सच है
राहें नहीं मिला करती हैं।।

(अगर मैं मुक्तिबोध होता....ख़ैर हो ही नहीं सकता)

- अभिषेक शुक्ल

सोमवार, 1 जनवरी 2018

Happy New Year 2018: एक दिन, दिल्ली की गलियों में

मेरा भाई समन्वय। नए साल की शुरुआत भाई ने दिल्ली घुमाकर की. ये जो पीठ पर बैग लादे हीरो जैसा लड़का है, घुमक्कड़ बनने के लक्षण इसमें हैं. अगली बार भाई के साथ किसी अच्छी जगह  जाने का मूड बना है. कुछ दिन बाद, अभी नहीं. 
हां तो मैं बता रहा था कि ये हुमायूं का मक़बरा है. अब इस मक़बरे की कहानी मेरी ज़ुबानी तो अभी सुनेंगे नहीं आप, क्योंकि थोड़ा टाइम लगेगा लिखने में जो कि आज कम है.  हम हौज ख़ास विलेज भी गए थे. झील देखने. मक़बरा भी  वहीं ही है. किसकी है मैंने ध्यान नहीं दिया. 
आज तस्वीरें देख लीजिए, कभी बाद में कहानी भी विस्तार से लिखूंगा. हां तो फ़ोटो की शुरुआत भाई से ही करते हैं क्योंकि इस ट्रिप का हीरो तो भाई ही है. 






समन मस्त मूड में. 

ये मॉडलिंग बस समन के कहने पर. वरना मुझे तो फ़ोटो खिंचवाने ही कहां आता है.

हीरो बनाकर ही मानेगा भाई।

अली ईसा खाँ नियाज़ी के मक़बरे के पास. समन आराम करते हुए.



भाई! ऐसा पोज तो कभी मैंने दिया ही नहीं था।

समन की फ़ोटो दिव्य है.


बांछें खिलने ही वालीं थी कि रुक गईं.

सेल्फ़ी ही इस युग का युगधर्म है.

योग करते समन बाबू।


इतना ख़राब पोज मेरे अलावा कोई नहीं दे पाएगा। मैंने कॉपी राइट लगवा लिया है.

ये भी कम थोड़े ही है किसी से. 
ये है कमाल का फ़ोटो है भाई।


हौज ख़ास विलेज वाले झील में बत्तख. मेरे गांव में तो यही कहते हैं इन्हें यहां अंग्रेज़ी में कुछ कहते हों तो नहीं पता मुझे. 
हां तो कहना भूल गया. विश यू ऑल ए वेरी हैप्पी न्यू ईयर. मस्ती कीजिए, ख़ुश रहिए...मेरे साथ जुड़े रहिए...सुझाव देते रहिए.....शुभमस्तु! मिस यू...जल्द ही मिलते हैं कुछ नया लिखकर.