वंदे मातरम्
जिस नक्षत्र में जय ही जय हो, उसमें ठहर-ठहर बीतूंगा.
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Abhishek Shukla
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बुधवार, 23 जनवरी 2013
जीवन
''मैंने रातों में जग के देखा,
और दिनों में सो के देखा ,
दोनों में कुछ हम खोते हैं,
हँसते भी हैं रोते भी हैं।''
गुरुवार, 10 जनवरी 2013
गुमनाम
कितना अँधेरा है यहाँ ,
राह चलते चेहरे गुम
हो जाते हैं,
साथ चलने वाले
कब राह बदल दें ,
कुछ पता ही नहीं चलता ,
अँधेरा और बढ़ता जाता है,
गुमनामी शुरू होती
जाती है,
किसे अपना कहें ,
अपनी परछाईं साथ नहीं देती
लोग तो फिर भी लोग हैं ...
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